शनिवार 27 मार्च 2021 - 19:26
इमाम महदी (अ.त.फ.श.) हमारे चेहरो को नही दिलो को देखेंगे, हुज्जतुल इस्लाम सैयद जान अली शाह काज़मी

हौज़ा / मौला इमाम मेहदी (अ.त.फ.श.) हमारे चेहरो को नही दिलो को देखेंगे। क्या हमने अपने दिलो से निजासात को निकाल फेका है?

हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, जाने-माने धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद जान अली शाह काज़मी ने अपने एक बयान में कहा कि मौला इमाम मेहदी (अ.त.फ.श.) हमारे चेहरो को नही दिलो को देखेंगे। क्या हमने अपने दिलो से निजासात को निकाल फेका है? इमाम के ज़हूर करने की दुआ में पूरी दुनिया की बरकते शामिल है। जब इमाम का ज़हूर होगा, तो भ्रष्टाचार, दमन, उत्पीड़न और अन्याय समाप्त हो जाएगा। शोषितों को अधिकार मिलेगा। हममें से कितने लोग इमाम के प्रति प्रेम रखते हैं।

इमाम ज़माना की ज़ियारत की वजह से प्रसिद्ध धर्मगुरू बहरुल-उलूम का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि नजफ के विद्वानों के दो समूह हो गए थे और उनमें से कुछ ग़ैबत-ए सुग़रा को नही मान रहे थे। इमाम के चौथे उत्तराधिकारी (नायब-ए खास) अली इब्न मुहम्मद सामरी तीन साल तक इमाम के विशेष उत्तराधिकारी रहे, जिनको इमाम ने एक पत्र लिखा था कि उनके बाद कोई विशेष उत्तराधिकारी (नायब-ए खास) नहीं होगा। चालीस दिनों के अमल के बाद, इमाम के हरम में उनकी इमाम से मुलाकात हुई और उन्होंने उन्हें मतभेदों के बारे में बताया। इमाम ज़माना ने उन्हें संकेत दिया कि आप पहले बहुत बुद्धिमान नहीं थे, लेकिन अब आप लोगों के सवालों का जवाब देंगे।

उन्होंने दरस में कहा कि यदि आप इमामे जमाना के करीब रहना चाहते हैं, तो इमाम के लिए चालीस दिन अमल करें, जिसमें आप खुद को हर तरह से पाप से बचाए और लोगों की सेवा करते रहे जिसका आरम्भ पहले पापों की क्षमा माँगकर करें।

उन्होंने उनसे 15 शाबान से रमजान तक रोजा रखने का आग्रह किया। जितना अधिक आप इमाम के करीब होने की कोशिश करेंगे, उतना ही प्यार बढ़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि इमाम की जियारत का दरवाजा खुला है और ग़ैबत मे भी रहकर काम कर रहे हैं। दुनिया को मुसलमान बनाने से पहले अपने आप को मुसलमान बनाओ।

उन्होंने कहा कि रोजा अल्लाह के लिए शुद्ध उपासना है और रौजे का आंतरिक आत्म पर कई प्रभाव पड़ते है। उपवास के कारण कैंसर कोशिकाएं मर जाती हैं। मनुष्य को हुब्बे जात का अंत करना चाहिए। अपने आप में त्याग की भावना पैदा करें। कुछ लोग ऐसे हैं जो इतने अच्छे भोजन की व्यवस्था करते हैं और वे इसे स्वयं नहीं खाते हैं बल्कि अल्लाह की राह में गरीबों को देते हैं।

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